Friday, March 29, 2024
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किसान आंदोलन : 16 मई को हिसार में आंदोलित किसानों पर पुलिस की बर्बरता पर वरिष्ठ पत्रकार अमित नेहरा का लेख 

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ब्लेसिंग इन डिसगायस एट हिसार
-अमित नेहरा
इस लोकोक्ति का अर्थ है कि जिस घटना से शुरू में कठिनाई और दिक्कतें हों मगर उसका परिणाम सुखद हो।
माफ कीजियेगा किसान आंदोलन के दौरान हिसार में 16 मई 2021 को हुए पुलिसिया जुल्म के लिए इस कहावत से बढ़िया कहावत  मुझे हिंदी में नहीं मिल पाई। इसलिए पोस्ट की शुरुआत अंग्रेजी से करनी पड़ी। हिंदी में इसका का शाब्दिक अर्थ है ‘दुःख के वेश में सुख’। इस लोकोक्ति के मायने हैं कि जिस घटना से शुरू में कठिनाई और दिक्कतें हों मगर उसका परिणाम सुखद हो।
इस लेख में चर्चा करेंगे कि 16 मई 2021 को हिसार पुलिस द्वारा किसानों पर किए गए अत्याचार ने पूरे देश में चल रहे किसान आंदोलन को किस तरह संजीवनी दे दी है।
इस कहावत को यहाँ लिखने का उद्देश्य नए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ देश में चल रहे किसान आंदोलन को अचानक मिली स्फूर्ति को लेकर है। पिछले साल देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान केन्द्र सरकार चुपचाप 5 जून 2020 को बिना किसी किसान, किसान संगठन और विपक्ष से चर्चा किए बगैर कृषि पर अचानक तीन अध्यादेश ले आई। कथित किसान विरोधी इन अध्यादेशों के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के किसान संगठन इनके खिलाफ अपनी नाराजगी जताने के लिए 20 जुलाई 2020 को ट्रैक्टरों के साथ सड़कों पर उतर गए। उसके बाद तो यहाँ खासकर पंजाब में हर जगह बन्द और धरनों प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया।
लेकिन केंद्र सरकार के कानों पर इससे कोई जूं नहीं रेंगी। किसानों की नाराजगी को धता बताकर आगामी सितंबर माह में इन तीनों बिलों को लोकसभा और राज्यसभा में पारित करवा लिया गया। अंततः राष्ट्रपति ने 27 सितंबर 2020 को इन पर हस्ताक्षर करके इन्हें कानून की शक्ल दे दी।
ऐसे में उत्तर भारत खासकर पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तराखंड और पश्चिमी उत्तरप्रदेश के किसानों का गुस्सा उबल पड़ा। विरोध में रणनीतियाँ बनने लगीं और आखिरकार 500 से ज्यादा किसान संगठनों से जुड़े लाखों किसानों ने 26 नवम्बर 2020 का दिल्ली कूच का फैसला ले लिया। दिल्ली कूच में किसानों को जगह-जगह सरकारी दमन का शिकार होना पड़ा। किसी तरह सभी बाधाओं को पार करके वे दिल्ली के चारों तरफ विभिन्न बोर्डरों पहुँच गए मगर दिल्ली पुलिस ने दिल्ली की सभी सीमाओं को किसानों के लिए सील कर दिया (कुछ लोग अनजाने में और कुछ जानबूझकर आरोप लगाते हैं कि किसानों ने दिल्ली के रास्ते बन्द कर रखे हैं, मगर हकीकत इससे बिल्कुल उल्टी है) अतः किसान दिल्ली के जंतर-मंतर पर जाने की परमिशन न मिलने पर वहीं बोर्डरों पर ही जम गए।
इसके बाद किसान आंदोलन में अनेक मोड़ आये, केंद्र सरकार ने उन्हें बातचीत के लिए बुलाया मगर बातचीत से मसला नहीं सुलझा। केंद्र सरकार एक पीआईएल की आड़ में सुप्रीम कोर्ट में भी गई ताकि किसानों को कोर्ट के बहाने साधा जा सके जबकि केंद्र सरकार इस मामले में सीधा पक्षकार ही नहीं थी। इस पर  भी बात नहीं बनी तो किसान अपनी माँगों को लेकर 26 जनवरी 2021 को दिल्ली में परेड करने पर अड़ गए। भारी प्रेशर के चलते अंतिम क्षणों में किसानों को एक सीमित क्षेत्र में परेड करने की अनुमति दे दी गई। अंतिम क्षणों में परमिशन दिए जाने व दिल्ली के रास्तों की जानकारी न होने से अनेक किसान दिल्ली में रास्ता भटक गए और अफरा-तफरी का माहौल हो गया। ऐसे में यह लगा कि आंदोलन दिशाहीन और कमजोर हो गया है। इस मौके का फायदा उठाकर उत्तरप्रदेश सरकार ने 28 जनवरी 2021 को जोर-जबरदस्ती करके किसान आन्दोलन को उखाड़ने की कोशिश की मगर सरकार की यह चाल उल्टी पड़ गई। पुलिस द्वारा किसान आंदोलन को कुचलने की कोशिश करने से यह आंदोलन उखड़ने की बजाय पहले से भी ज्यादा मजबूत हो गया। आंदोलन को देश के हर हिस्से से व्यापक जनसमर्थन मिलने लगा।
लेकिन हाल ही में देश में भयानक रूप से फैले कोरोना वायरस के प्रकोप से जनता का ध्यान किसान आंदोलन से हट सा गया था। चर्चा होने लगी थी कि कहीं किसान वापस तो नहीं चले गए, मेनस्ट्रीम मीडिया से भी किसान आन्दोलन गायब सा ही हो गया था।
ऐसे में 16 मई 2021 को अचानक आंदोलन को संजीवनी मिल गई। पूरे प्रदेश में धारा 144 लागू के बावजूद हरियाणा के हिसार शहर में इस दिन मुख्यमंत्री मनोहर लाल एक अस्थाई कोविड हॉस्पिटल का फीता काटने आ गए। किसानों ने मुख्यमंत्री के इस दौरे का विरोध करने का एलान किया हुआ था। मुख्यमंत्री के जाने के एक घन्टे बाद पुलिस ने अचानक बिना किसी चेतावनी के शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे किसानों पर लाठियां भांजी, अश्रुगैस छोड़ी और पत्थरबाजी कर दी। यहाँ तक कि लाठियां मार-मारकर एक बुजुर्ग महिला का सिर  फोड़ दिया गया। इस वीभत्स कांड में सैंकड़ों किसानों को पीट-पीटकर अधमरा कर दिया गया और उन्हें हिरासत में ले लिया गया। पुलिसकर्मियों का जब इससे भी जी नहीं भरा तो उन्होंने घरों और प्रतिष्ठानों में खड़ी गाड़ियों को डंडे मार-मार कर तोड़ दिया मानों ये निर्जीव गाड़ियां भी देश व प्रदेश की सुरक्षा के लिए खतरा हों!
उस दिन शाम होते-होते हिसार में हजारों किसान और किसान नेता इकट्ठा हो गए। इनके प्रेशर में पुलिस-प्रशासन को झुकना पड़ा और  गलती स्वीकार कर हिरासत में लिए गए किसानों को छोड़ने का आश्वासन दे दिया गया। यह भी कहा कि इस मामले में कोई एफआईआर दर्ज नहीं की जाएगी। मामला लगभग शांत हो गया था।
लेकिन किसान नेताओं का कहना है कि पुलिस-प्रशासन अगले ही दिन अपनी जबान से पलट गया और 350 किसानों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 148, 188, 307 और 353 के तहत एफआईआर दर्ज कर ली। किसानों का यह भी कहना है कि इस एफआईआर को सार्वजनिक नहीं किया गया। यहाँ तक कि 23 वर्षीया एक युवती के खिलाफ भी पुलिसकर्मियों की हत्या के प्रयास का मुकद्दमा तक दर्ज कर लिया।
हिसार पुलिस के इस अत्याचार और धोखे का खुलासा हुआ तो पूरे भारत में इसका विरोध हुआ। इस कारनामे के कारण अचानक ही किसान आंदोलन गुमनामी से निकल कर फिर से लाइमलाइट में आ गया। पुलिसिया प्रहार के कारण अपने फटे माथे के खून से तर-बतर एक वृद्धा की फोटो सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर वायरल हो गई। इससे राज्य सरकार की राष्ट्रीय स्तर पर बेहद किरकिरी हुई और लोगों की सहानुभूति किसानों के प्रति बढ़ गई। पुलिस-प्रशासन की वादा-खिलाफी के कारण किसान नेताओं ने सरकार पर नकेल कसने के लिए 24 मई 2021 को हिसार चलो की घोषणा कर दी।
जिस उत्साह और जितनी भारी संख्या में किसान शार्ट नोटिस पर 24 मई को हिसार उमड़े हैं उससे पता चलता है कि किसानों के हौसले पूरी तरह बुलंद हैं और वे लम्बी लड़ाई के लिए मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से तैयार हैं। इससे हुआ यह कि जो व्यक्ति किसान आन्दोलन के ताजा हालातों से बेखबर थे उन्हें 24 मई 2021 के हिसार मार्च से पता चल गया कि किसान आंदोलन अभी भी पूरे शबाब पर है।
बेशक हिसार पुलिस के कुछ अफसरों ने किसानों पर यह अत्याचार सरकार में अपने नम्बर बनाने व वाहवाही लूटने के लिए किया हो लेकिन उनका यह दाँव बिल्कुल उल्टा पड़ गया। क्योंकि इस नृशंस कांड में अनेक महिलाएं और बुजुर्ग जख्मी तो हुए लेकिन यह किसान आंदोलन के लिए ठीक ‘ब्लेसिंग इन डिसगायस’ के रूप में सामने आया है। यानी दुःख के वेश में सुख आ गया है। इसके चलते सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा है। अधिकांश लोगों की संवेदनाएं जख्मी और प्रताड़ित किसानों के साथ हैं। जो लोग ये मान चुके थे कि किसान आंदोलन अब समाप्त हो गया है, हिसार कांड से उपजी जबरदस्त प्रतिक्रिया ने उनके सपनों पर पानी फेर दिया है।
कहा जा सकता है कि इस प्रकरण ने लाला लाजपतराय के बदन पर पड़ी लाठियों की पुनः याद दिला दी है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक, लेखक, समीक्षक और ब्लॉगर हैं)
अमित नेहरा
फोटो : अमित नेहरा और किसान आंदोलन हिसार
सम्पर्क : 9810995272
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