Friday, April 26, 2024
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कोरोना से रेस हारे फ्लाइंग सिख “मिल्खा सिंह” का निधन, 5 दिन पहले उनकी पत्नी भी इस दुनिया से अलविदा हो गयी थी

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चंडीगढ़, 19 जून : फ्लाइंग सिख के नाम से मशहूर देश के महान धावक मिल्खा सिंह का शुक्रवार रात 11.30 बजे निधन हो गया. 91 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली. वह कोरोनावायरस से संक्रमित हुए थे और चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था. एक महीने पहले बीती 19 मई को उनकी कोविड रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद वह चंडीगढ़ स्थित अपने घर पर ही इलाज करवा रहे थे लेकिन स्वास्थ्य बिगड़ने के बाद 24 मई को उन्हें मोहाली के एक प्राइवेट अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया. 13 जून को उनकी पत्नी और भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की पूर्व कप्तान निर्मल मिल्खा सिंह का मोहाली के एक अस्पताल में COVID-19 संक्रमण से निधन हो गया था.

मिल्खा सिंह को 3 जून को चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में भर्ती कराया गया. 13 जून को उन्होंने कोविड को मात दी. उनकी जांच रिपोर्ट नेगेटिव आई लेकिन उनकी हालत स्थिर बनी हुई थी. डॉक्टरों की एक विशेष टीम उनका इलाज कर रही थी. 18 जून शुक्रवार रात 11:30 बजे उन्होंने अस्पताल में अंतिम सांस ली.करीब एक महीने से कोरोना से जूझ रहे मिल्खा सिंह की तबीयत शुक्रवार को अचानक बिगड़ गई थी। एक दिन पहले तक वे अच्छी तरह उबर रहे थे। पीजीआई भी उनके स्वास्थ्य लाभ पर संतुष्टि जता रहा था लेकिन शुक्रवार को उन्हें बुखार आया और ऑक्सीजन का स्तर भी गिर गया। उनके ऑक्सीजन का स्तर 56 तक पहुंच गया था। देर रात अचानक महान खिलाड़ी के निधन की खबर आई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिल्खा सिंह के निधन पर शोक व्यक्त किया है. उन्होंने ट्वीट किया, ‘श्री मिल्खा सिंह जी के निधन से हमने एक महान खिलाड़ी खो दिया है, जिसने देश की कल्पना पर अपनी छाप छोड़ी थी और अनगिनत भारतीयों के दिलों में एक विशेष स्थान बना लिया था. उनके प्रेरक व्यक्तित्व ने खुद को लाखों लोगों का प्रिय बना दिया था. उनके निधन से आहत हूं.
जीवन में कभी हार न मानने वाले मिल्खा सिंह के संघर्ष पर बॉलीवुड की फिल्म ‘भाग मिल्खा भाग’ बनी है। मिल्खा सिंह के बेटे जीव मिल्खा सिंह मशहूर गोल्फर हैं।
मिल्खा सिंह ने चार बार एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीता था . वर्ष 1958 कॉमनवेल्थ गेम्स के चैंपियन भी रहे थे .1960 के रोम ओलिंपिक खेलों में 400 मीटर की दौड़ में वे मामूली अंतर से पदक से चूक गए थे और चौथे स्थान पर रहे थे. वे 1956 और 1964 के ओलिंपिक खेलों में भी शामिल हुए थे. 1959 में उन्हें पद्मश्री सम्मान मिला था.