प्रसिद्ध साहित्यकार नमिता राकेश ने चंद्रयान -3 के चंद्रमा पर पहुँचने की ख़ुशी को इस प्रकार खूबसूरत शब्दों में पिरोया है
तब
(चन्द्र यान 2)
यही रंज है कि तुम तक आए
लेकिन तुमको छू नहीं पाए
धरती से तुम्हें देखा
तुम्हारी ओर खिंचे आए
तो थोड़ा तुम भी झुक जाते
हमारी ओर आ जाते
तुम मग़रूर इतने हो
ज़रा सा भी नहीं पिघले
हमें मिलने की खातिर तुम
देहरी से नहीं निकले
हो सकता है तुम्हे छू कर
तुम्हारे हो के रह जाते
जो धरती पे हमारे हैं
वो मलते हाथ रह जाते
इतना फासला तय कर
तुम्हारी ओर हम आए
मगर तुम निकले हरजाई
हमें मिलने नहीं आए
तुम अपनी चांदनी को
अपने पास ही रखो
हमारे पास सूरज है
यह तुम ध्यान में रखो
तुम पर है नज़र अपनी
तुम्हारे पास ही हैं हम
इस भ्रम में मत रहना
कि घर को लौट जाएंगे
तुम्हें छूने की ठानी है
तुम्हें छू कर ही जाएंगे
तुम्हें छू कर ही जाएंगे
© नमिता राकेश
और अब
(चन्द्र यान 3)
तुम्हारी वो बेरुखी
हमें कुछ रास नहीं आई
तुमसे मिलने को हमने
देखो फिर से जुगत लगाई
तुम्हारे वो पहले के नखरे
तुम्हारे काम नहीं आए
तुमसे मिलने को देखो
फिर तुम तक चले आए
अटल की धरती से हैं हम
अटल हमारे इरादे हैं
अगर तुम हो हमारे तो
हम भी तो तुम्हारे हैं
सदियों से तुम्हें देखा
तुम्हें ही देख कर व्रत तोड़ा
सुहागिनों के तुम हे चांद !
सदियों से मनहारे हो
गर हैं हम तुम्हारे तो
तुम भी तो हमारे हो
इतनी दूर तुम बैठे
हठ हम भी तो कर बैठे
कि तुम तक आ ही जाएंगे
वादे को निभाएंगे
ले के हाथ मे झंडा
तिरंगे को फहराएंगे
तिरंगे को फहराएंगे
जय हिंद
—नमिता राकेश